Saturday, September 24, 2011

फिर छिड़ी रात बात फूलों की...

फिर छिड़ी रात बात फूलों की...


आज कुछ तस्वीरें पेश कर रही हूँ जो मैंने अपनी कुछ दिन पहले की नोर्थ ईस्ट की यात्रा में दार्जिलिंग, कलिम्पोंग (पश्चिम बंगाल), गंगतोक (सिक्किम) , शिलॉन्ग, चेरापूंजी (मेघालय), गुहाटी,  और शिवसागर (असम) से ली थी. 



















साथ में पेश है मख़दूम मोहिउद्दीन साहब कि बहुत खूबसूरत गज़ल. यह गज़ल "बाजार" फिल्म में तलत अज़ीज़ साहब और लता जी ने गायी थी और संगीत दिया था खैयाम साहब ने. शुक्रिया उन सभी गुणी जनो का.


फिर छिड़ी रात बात फूलों की
रात है या बारात फूलों की ।

फूल के हार, फूल के गजरे
शाम फूलों की रात फूलों की ।

आपका साथ, साथ फूलों का
आपकी बात, बात फूलों की ।

नज़रें मिलती हैं जाम मिलते हैं
मिल रही है हयात फूलों की ।

कौन देता है जान फूलों पर
कौन करता है बात फूलों की ।

वो शराफ़त तो दिल के साथ गई
लुट गई कायनात फूलों की ।

अब किसे है दमाग़े तोहमते इश्क़
कौन सुनता है बात फूलों की ।

मेरे दिल में सरूर-ए-सुबह बहार
तेरी आँखों में रात फूलों की ।

फूल खिलते रहेंगे दुनिया में
रोज़ निकलेगी बात फूलों की ।

ये महकती हुई ग़ज़ल 'मख़दूम'
जैसे सहरा में रात फूलों की ।